शस्त्र शास्त्र के ज्ञाता ,महान योद्धा और एक सफल विद्वान के साथ-साथ मित्रता की जिंदा मिसाल थे कवि चंद्रवरदाई

शस्त्र शास्त्र के ज्ञाता ,महान योद्धा और एक सफल विद्वान के साथ-साथ मित्रता की जिंदा मिसाल थे कवि चंद्रवरदाई

शस्त्र शास्त्र के ज्ञाता ,महान योद्धा और एक सफल विद्वान के साथ-साथ मित्रता की जिंदा मिसाल थे कवि चंद्रवरदाई
शस्त्र शास्त्र के ज्ञाता ,महान योद्धा और एक सफल विद्वान के साथ-साथ मित्रता की जिंदा मिसाल थे कवि चंद्रवरदाई

     भीनमाल 

शस्त्र शास्त्र के ज्ञाता ,महान योद्धा और एक सफल विद्वान के साथ-साथ मित्रता की जिंदा मिसाल थे कवि चंद्रवरदाई ! -ओपावत

राव महासभा के तत्वावधान में शरद पूर्णिमा के अवसर पर मंगलवार रात्रि स्थानीय श्री बगस्थली माता मंदिर प्रांगण में  पृथ्वीराज रासो के रचयिता महाकविराव सामंत चन्दबरदाई की जयंती  पर  कार्यक्रम आयोजित किया गया।कार्यक्रम में चंद वरदाई कृत सिध्द  देवी स्त्रोत का सस्वर सामूहिक पाठ किया गया । कार्यक्रम में राव महासभा ,जालोर के जिलाध्यक्ष  अशोकसिंह ओपावत एडवोकेट ने  कहा कि  महाकवि चंद महान राष्ट्रभक्त , परम् मित्र,महाकवि , योद्धा ,परम् भक्त, विद्वान  बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । जिनसे हमें आज प्रेरणा लेने एवम उनके चरित्र को जीवन मे उतारने की आवश्यकता है । महाकविराव सार गोत्रिय हिंदी भाषा के आदिकवि थे इनके पूर्वज की भूमि पंजाब थी, इनका जन्म लाहोर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। इनका और महाराज पृथ्वीराज का जन्म एक ही दिन हुआ था। ये महाराज पृथ्वीराज  के सखा और सामंत भी थे। वे षड्भाषा, व्याकरण, काव्य, साहित्य, छंद:शास्र, ज्योतिष, पुराण, नाटक आदि अनेक विद्याओं में पारंगत थे। उन्हें देवी जालन्द्री का अदृष्ट काव्य लेखन का वरदान होने से वरदाई कहलाए ।कार्यक्रम में महाकवि के जीवन पर प्रकाश डालते हुए  महासभा के महासचिव सांवलसिंह लोल ने बताया कि महाकवि का जन्म: वि. संवत् 1206 में  सार वंश में हुआ ।  चन्द "वरदाई" सार उनसे वरदीया, चन्दज, जल्हार (जलसार) और राजौरा वंश हुआ जो   ज्वाला देश (काँगड़ा) के राजा थे व ये हिन्दी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं और इनका पृथ्वीराज रासो हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है।लोल ने बताया कि महाकवि चंद वरदायी  एक हिन्दू भारतीय राजा पृथ्वीराज तृतीय चौहान के राजकवि एवं परम मित्र थे जिन्होंने 1165 से 1195 तक अजमेर और दिल्ली पर शासन किया। चंद बरदाई ने पृथ्वीराज रासो लिखा जो  पृथ्वीराज के जीवन चरित्र पर हिंदी में एक महाकाव्य  है ।इस अवसर पर राव भरत सिंह भोजाणी ने बताया कि इनका जीवन पृथ्वीराज के जीवन के साथ ऐसा मिला हुआ था कि अलग नहीं किया जा सकता। युद्ध में, आखेट में, सभा में, यात्रा में, सदा महाराज के साथ रहते थे, और जहाँ जो बातें होती थीं, सब में सम्मिलित रहते थे।
 कार्यक्रम में उपस्थित शिक्षाविद मोहब्बत सिंह भीनमाल, भंवर सिंह कोडिटा , नारायण सिंह सेवड़ी ,गोपाल सिंह मणधर , जोरावर सिंह सियाणा व प्रेम सिंह भोजाणी ने अपने विचार व्यक्त किए । कार्यक्रम में राव हक सिंह भावाणी , थान सिंह ओपावत,हेम सिंह भावाणी , नरपत सिंह लोल, पहाड़ सिंह इराणी,मोहन सिंह सेवड़ी,श्रवण सिंह सोलंकी , प्रेम सिंह लोल मनधर,भूपेंद्र सिंह भोजाणी, श्रवण सिंह लोल मणधर,चन्दन सिंह भोजाणी, प्रवीण सिंह भोजाणी, उत्तम सिंह लोल सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।कार्यक्रम के अंत मे सभी लोगों ने शरद पूर्णिमा की विशेष  खीर प्रसादी ग्रहण की ।