मेवाड़ रियासत की शान शाही लहरिया तलवार का वर्णन.....
Description of the Pride Shahi Lahariya sword of the princely state of Mewar.....
नमस्कार दोस्तों मैं आपका दोस्त हिमांशु परिहार अपने ब्लॉग में आपका स्वागत करता हूं
आज हम बात करेंगे तलवारों में शाही तलवार लहरिया तलवार के बारे में, कि कैसे इसको बनाया जाता था और किसके द्वारा बनाया गया था, और इसका क्या इतिहास रहा,तो दोस्तों तलवार तो आपने सभी ने हर समुदाय के लोगों के पास या उनके प्रोग्राम या उनके घर में देखी ही होगी ! पर तलवार में लहरिया तलवार कि ऐसी क्या खास बात है कि उसका यहां पर वर्णन करना कितना आवश्यक हो गया,
16 वी शताब्दी में पृथ्वीसिंह परिहार श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज के द्वारा मेवाड़ रियासत के भिंडर गांव में बनाई गई थी उनके बाद उनके पुत्र श्री दौलत सिंह परिहार ने इस कला को आगे बढ़ाया और वर्तमान में आप कारीगर दौलत के नाम से म्यूजियम में लहरिया
तलवार को देख सकते हैं तलवार की खासियत यह थी कि इसे देखकर हर कोई इसकी और आकर्षित हो जाता था और इसे पाने के लिए आतुर होता था लहरिया तलवार मेवाड़ रियासत में दूसरी रियासतों से आए मेहमानों को देने के लिए खास तौर पर लहरिया तलवार की मांग की जाती थी जैसे चाहे अलवर हो चाहे जयपुर हो या जोधपुर की हो या और भी रियासत उन सब में जितनी रियासत हैं यदि उन रियासत से मेवाड़ में कोई आता था तो उसको उपहार देने के लिए लहरिया तलवार दी जाती थी यहां तक की विदेशों से आए हुए मेहमान को भी लहरिया तलवार मेवाड़ से उपहार में दी जाती थी ! लहरिया तलवार आप हिंदुस्तान समेत विदेशों के म्यूजियम मैं भी देख सकते हैं वर्तमान में सिटी पैलेस के हथियार म्यूजियम तथा लंदन के म्यूजियम में भी लहरिया तलवार को देखा जा सकता है !
दोस्तों लहरिया तलवार उस जमाने में बिना किसी वेल्डिंग के सिर्फ लोहे को बारिक बुरा या लोहे का बारीक बुरादा कर कर उसको गर्म कर कर भट्टी में भट्टी में गर्म कर कर लहरिया तलवार बनाई जाती थी ! तथा इसकी खासियत इसकी पकड़ जिसे मुठ भी कहते हैं उसमें हाथी शेर की मुठ की मांग होती थी मुठ लोहे की होती थी और उस पर सोने से कार्य किया जाता था बिना किसी मशीन के सोने की कारीगरी की जाती थी जिसे उठमां वर्क भी कहा जाता था लहरिया तलवार गढ़ने के बाद उसमें सिकल वर्क भी होता था जिससे उसकी चमक और बढ़ जाती थी
तो पहला तो लहरिया वर्क दूसरा लोहे की मुठ पर सोने का कार्य और तीसरा तलवार पर सिकल कार्य यह इसकी खासियत हुआ करती थी इसलिए इसे शाही तलवार भी कहा जाता था, यह सारी कारीगरी हाथ से बनाई जाती थी कहा जाता है की मेवाड़ में और दूसरी रियासतों में जब लहरिया तलवार की मांग बढ़ने लगी तो मेवाड़ रियासत के दरबार फतेह सिंह जी ने भिंडर से सिकलीगर समाज के श्री किशन सिंह परिहार को मेवाड़ में वर्तमान उदयपुर में घंटाघर क्षेत्र में लाकर बसाया था जो पहले धाबाई समाज के लोगों के मकान हुआ करते थे अब वर्तमान में आप सिकलीगर समाज के लोगों की दुकाने वह मकान देख सकते हैं, दोस्तों वर्तमान में लहरिया तलवार की कला को श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज मैं उदयपुर में बहुत कम व्यक्ति ही जानते हैं जिसको यह ओरिजिनल लहरिया तलवार की बनावट की कला आती है उनमें से एक श्री दिलीप कुमार परिहार श्री मारू लोहार सिकलीगर उदयपुर भी है जिनको इस कला का हुनर आता है जो स्वर्गीय श्री बद्रीलाल परिहार ( भिंडर) के पुत्र हैं वर्तमान में जो लहरिया तलवारे बनाई जा रही है उनमें ज्यादातर आधुनिक वेल्डिंग मशीनों से जॉइंट कर कर बनाई जा रही है
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श्री पृथ्वी सिंह परिहार भिंडर की पीढ़ी का वर्णन
16 वी शताब्दी से पृथ्वी सिंह परिहार श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज भिंडर की पीढ़ी गंगा
श्री पृथ्वीसिंह परिहार शॉर्ट नेम (पीत्था जी)
⬇️ उनके पुत्र
श्री दौलत सिंह परिहार
⬇️ उनके पुत्र
श्री किशन सिंह परिहार
⬇️ उनके पुत्र
श्रीउदयलालपरिहार- श्रीमोहनलालपरिहार-श्रीरतनलाल परिहार
⬇️ श्री उदय लाल परिहार के पुत्र
⬇️श्रीभंवरलाल_श्रीशंकरलाल_श्रीबद्रीलाल
⬇️श्री बद्रीलाल जी परिहार उनके पुत्र
⬇️श्री महेश चंद्र उनके छोटे भाई श्री दिलीप कुमार परिहार उनके छोटे भाई श्री हिम्मत सिंह उनके छोटे भाई श्री विष्णु कुमार उनके छोटे भाई श्री राजकुमार है
दोस्तों वर्तमान में श्री दिलीप कुमार परिहार ही इस पीढ़ी के अंतिम जानकार हैं
तथा मैं हिमांशु परिहार इस पीढ़ी में सातवीं पीढ़ी का वंशज श्री पृथ्वी सिंह परिहार का लड़खड़ा पोता
श्री पृथ्वी सिंह परिहार भिंडर
उनके पुत्र_श्री दौलत सिंह परिहार
उनके पुत्र श्री किशन कुमार परिहार
उनके पुत्र श्री मोहन कुमार परिहार
उनके पुत्र श्री सोहन लाल परिहार
उनके पुत्र श्री मदनलाल परिहार
उनका पुत्र हिमांशु परिहार
उनका पुत्र देवांश परिहार
तो दोस्तों यह था लहरिया तलवार का वर्णन उसका संक्षिप्त इतिहास तथा वर्तमान में लहरिया तलवार के कारीगर तथा पृथ्वी सिंह परिहार की पीढ़ी का वर्णन दोस्तों यहां पर पीढ़ी का वर्णन इसलिए किया गया क्योंकि मैं हिमांशु परिहार 2022 में अपने पूर्वजों के कार्य की सातवीं पीढ़ी मैं आता हूं तथा सिकलीगर समाज के बारे में बहुत कम ही इतिहास जानने को मिलता है यह सारी जानकारी सामाजिक स्तर पर तथा सोशल मीडिया पर जो ब्लॉक है उनसे तथा समाज के लोगों द्वारा बया की गई उन सभी बिंदुओं के आधार पर आपके सामने पेश कर रहे हैं अगर आपको इसमें और सुधार की आवश्यकता या आप इस संबंध में और जानकारी जानते हैं तो आप हमें बता कर और भी मजबूत जानकारी बनाने में सहयोग कर सकते हैं आप हमें कमेंट के द्वारा भी अपनी जानकारी साझा कर सकते हैं कमेंट कर कर जरूर बताइएगा धन्यवाद