सिकलीगर समाज का इतिहास और उसका संघर्ष
श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज में सिकलीगर समाज का इतिहास जैसे कि हमने आपको लोहार पर कुछ अंश ही बता पाए थे

सिकलीगर समाज का इतिहास और उसका संघर्ष....
नमस्कार दोस्तों आप सब का स्वागत है हमारे ब्लॉक में मैं आपसे निवेदन करता हूं कि आप हमारे ब्लॉग को लाइक करें और शेयर करें आज का विषय है श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज में सिकलीगर समाज का इतिहास जैसे कि हमने आपको लोहार पर कुछ अंश ही बता पाए थे अपनी यूट्यूब वीडियो पर और हमारा रिसर्च चल रहा है कि हम और सटीकता तक पहुंच पाए तो चलिए सिकलीगर पर रोशनी डालते हैं कि कैसे पड़ा सिकलीगर शब्द और इसका इतिहास तो दोस्तों अगर सिकलीगर शब्द की बात करें तो सिकलीगर शब्द के बारे में जैसे कई इतिहासकारों ने एचए रोज ,डेंजिलईबेटशन विलियम्स क्रुक और सिकलीगर की वर्तमान परिवारों के सदस्यों और ब्लॉगर के मत के अनुसार सिकलीगर का अर्थ सिकल + घर = सिकलीगर जिसमें शक्ल दिखे वह घर सिकलीगर शब्द कह लाता है
इसका इतिहास तो दोस्तों इतिहास तो आपको यह समझ आ गया होगा कि सिकलीगर शब्द का निर्माण कैसे हुआ सिकल एक उर्दू शब्द है और इसको पुराने जमाने में RC के लिए प्रयोग किया जाता था RC लोहे की होती थी उस पर फौलाद से पॉलिश की जाती थी जिससे उसमें इतनी चमक हो जाती थी कि इंसान अपनी शक्ल भी देख ले और यह RC पुराने समय में राज परिवारों में रानियां अपने को रूप निखारने के लिए RC का ही प्रयोग किया करती थी क्योंकि उस समय मैं कांच का तो आविष्कार ही नहीं हुआ था तब इसी RC का प्रयोग किया जाता था ! रूप देखने के लिए तो आपको समझ आ गया होगा कि रूप देखने के लिए पुराने जमाने में राज परिवारों में RC का प्रयोग होता था और RC बनाने में जो कार्य किया जाता था उसको उसको सीकल वर्क बोला करते थे इसी को देखकर सिकलीगर शब्द का जन्म हुआ अब आप सोच रहे होंगे की सिकल से सिकलीगर का क्या ताल्लुक
तो दोस्तों श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज में सिकलीगर शब्द कैसे लगा तो आप सब को ज्ञात होगा कि लोहार द्वारा जो शस्त्र बनाए जाते थे उन्हीं के दम पर युद्ध लड़े और जीते जाते तो सिकलीगर शब्द कैसे जुड़ा इसको समझने के लिए हमें मरूभूमि की ओर जाना पड़ेगा मरूभूमि का अर्थ है रेगिस्तानी धरती मरू को रेगिस्तान कहा जाता है मरूभूमि से आने वाले लोहार को मारु लोहार कहा जाता था या यू कहें कि मरूभूमि से आने वाले लोहारों को मारु लोहार कहा जाने लगा इस पर हम आगे बताएंगे
अभी इतना ही की रेगिस्तान को मरूभूमि कहते थे और मरूभूमि से आने वाले लोहार को मारु लोहार कहा जाने लगा और जिन लोहार की तलवारे चमकती थी या सिकल हुआ करती थी या यूं कहें की जिन मारु लोहार समाज के लोगों की तलवारे चमका करती थी और सिकल हुआ करती थी जिसमें राजा अपनी शक्ल भी देख लेते थे उनको सिकलीगर कहां जाने लगा यहां पर यह स्पष्ट होता है कि सिकलीगर राजाओं के द्वारा खुश होने पर प्रसन्न होने पर दी गई एक पदवी है जो उत्तम तलवार निर्माण या चमकीली सिकल की गई तलवार जिसमें शक्ल देखी जा सके उन्हें यह विशेष पदवी के रुप में बुलाया जाता था जिससे यह सिकलीगर शब्द प्रचलन में आया ! यहां पर आप यह भी कह सकते हैं कि तलवार की डिमांड के लिए सबसे ज्यादा सिकलीगर समाज के लोगों की तलवारों की डिमांड की जाती थी क्योंकि उनकी तलवारे मजबूत और आकर्षण वाली होती थी
अब आता है इतिहास
तो दोस्तों इसके लिए हमें सिख समुदाय के इतिहास में जाना पड़ेगा 15 वी शताब्दी में सिख धर्म के संस्थापक संत गुरु नानक साहब के समय में जब सिख धर्म की स्थापना हुई थी सिख धर्म की स्थापना संत गुरु नानक साहब ने की उस समय शांति का मार्ग और अहिंसा के मार्ग पर संत गुरु नानक साहब ने सभी धर्म को एक करके मानव जाति के लिए कल्याण के लिए प्रेरित किया और एक रहने की शिक्षा दी,
पर 16 शताब्दी तक आते-आते सिख धर्म को अपने अस्तित्व के लिए भी हथियार उठाने पढ़ें और सन 1606 मैं सिखों के छठे गुरु साहेब श्री हरगोविंद जी ने सिख धर्म की कमान संभाली और दो तलवारें ग्रहण की मिरी और पीरी इन्हीं ने 16 वी शताब्दी में सिकलीगर समाज को अपने यहां पर आकर उत्तम तलवारें शस्त्र और युद्ध कला सिखाने का निमंत्रण भेजा यह कई इतिहासकारों के इतिहास में भी वर्णन मिलेगा की सिख धर्म के छठे गुरु गुरु हरगोविंद सिंह जी ने सिकलीगर समाज को उत्तम शस्त्र निर्माण और युद्ध कला सिखाने के लिए अपने क्षेत्र में आमंत्रण किया उनको यह ज्ञात था कि सिकलीगर समाज ही ऐसी समाज है
जिसने मेवाड़ में और कई युद्धों में अपने उत्तम हथियार और तलवारें दे देखकर युद्ध परिणाम बदल दिए इसी से प्रेरित होकर सिखों के छठे गुरु गुरु हरगोविंद सिंह जी को प्रेरित किया जिस से प्रेरित होकर गुरु हरगोविंद सिंह जी ने सिकलीगर समुदाय को अपने क्षेत्र में आकर तलवारें और शस्त्र निर्माण व युद्ध में युद्ध के युद्ध प्रशिक्षण कराने के लिए निमंत्रण करना पड़ा यह सिख धर्म और इतिहास के कई इतिहासकारों ने अपने इतिहास में वर्णन किया है
कहा तो यह भी जाता है कि संत गुरु हरगोविंद सिंह जी ने जो मीरी पीरी नाम की दो तलवारे ग्रहण की वह भी सिकलीगर समुदाय के लोहारों द्वारा निर्माण की गई थी तथा सिख धर्म की रक्षा के लिए सिकलीगर समाज ने बहुत बड़ा योगदान दिया यहां पर हम इतना सा कहेंगे की वर्तमान में सिख धर्म के लिए सिकलीगर लोहार समुदाय ने बहुत बड़ा योगदान दिया आपको यह इसलिए बताया गया हे की ताकि आपको यह तो ज्ञात हो जाएगी की सिकलीगर समुदाय शब्द नया नहीं है
सन 16 सोलवीं शताब्दी तक यह पूर्ण प्रचलन है आ गया था इसलिए सिख धर्म में भी इसकी व्याख्या मिलती है लेकिन क्या 1 दिन में कोई शब्द इतना प्रचलन में या विकसित हो सकता है नहीं ना और वह भी उस समय जब सुविधा के नाम पर कुछ नहीं था और हर और युद्ध का संघर्ष था तो सिकलीगर शब्द यहां पर यह अनुमान लगा सकते हैं कि जब पदवी मिली होगी सिकलीगर समाज की तो 100 से 200 वर्ष तो लगे होंगे उसे भारत में अपना अस्तित्व बनाने में क्योंकि वर्तमान में हर क्षेत्र में आप हर राज्य में कहीं ना कहीं और हर धर्म में चाहे सिख धर्म हिंदू धर्म या मुस्लिम धर्म हो हर धर्म में सिकलीगर लोहार आपको मिल ही जाएंगे तो पूरे भारत में और कई इतिहास और ब्लॉक में तो सिकलीगर समाज को राजा श्री पृथ्वीराज चौहान के समय में भी हथियारों की सप्लाई करने के लिए वर्णन मिलता है तो इससे यह स्पष्ट होता है कि कम से कम हजार से 8 सो साल पुराना सिकलीगर शब्द का और सिकलीगर समाज का अस्तित्व है इतिहास है
इससे आप यह भी आकलन लगा सकते हैं कि भारत में हुए युद्ध में सिकलीगर समाज को उत्तम शस्त्र सप्लायर भी कह सकते हैं क्योंकि सिकलीगर समाज शस्त्र निर्माण के साथ-साथ उसकी सटीकता और गुणवत्ता भी देखती थी जिससे चलाने में आसान और मजबूत और सटीक बन सके तथा युद्ध में जीत में पकड़ भी मिलती थी क्योंकि शस्त्र तो हर कोई बना सकता था पर उसकी गुणवत्ता और पकड़ और सटीकता के बिना वह शस्त्र चलाने वाले के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है
यहां पर आप अनुमान लगा सकते हैं कि तलवार तो बना ली पर एक वार में तलवार के दो टुकड़े हो जाए तो चलाने वाला तो वैसे ही मनोबल खो देता है जैसे तलवार की पकड़ और गुणवत्ता के कारण ही मेवाड़ के स्वाभिमानी हिंदुजा राजा सूर्य प्रताप महाराणा प्रताप ने मुगलों के सैनिक को एक ही बार में घोड़े समेत दो भागों में काट दिया था यह कुशल कारीगरी और गुणवत्ता की मिसाल है
यही सिकलीगर लोहार समाज के गुणों ने सीख समुदाय के गुरु गुरु हरगोविंद सिंह जी को आकर्षित किया और अपने क्षेत्र में शस्त्रों की बिक्री के लिए निमंत्रण करने के लिए प्रेरित किया इसलिए आप यहां पर कर सकते हैं कि बीते हजार वर्षों में भारत में सत्रों में आधुनिकता व गुणवत्ता में सिकलीगर समाज का बहुत बड़ा रोल है या रहा था आज भी सिकलीगर समाज के द्वारा बनाई गई तलवारों को कई म्यूजियम में देख सकते हैं यहां पर आप यह भी कह सकते हैं की शस्त्र निर्माण के साथ-साथ सिकलीगर समाज ने धर्म की ध्वजा के लिए बहुत संघर्ष किया था
अब आते हैं सिकलीगर समाज के धर्म परिवर्तन पर दोस्तों कई इतिहासकार व ब्लॉक में सिकलीगर को धर्म परिवर्तन पर बहुत से विचार लिखें मिलते हैं कि उन्होंने डर कर अपना धर्म चेंज कर दिया
हो भी सकता है कि उन्होंने डरकर धर्म चेंज कर दिया पर यहां पर यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि जब भारत में मुगलों से युद्ध और संघर्ष चल रहा था तो कई बार वीराशर्तें उजड़ी भी और बसी भी थी लेकिन सिकलीगर समाज हर परिस्थितियों को झेलते हुए आगे बढ़ता गया पर अंग्रेजों के शासन में आते-आते कई नीतियां ऐसी बनाई गई जिसने सिकलीगर समुदाय की आर्थिक स्थिति को तोड़ कर रख दिया और अंग्रेजों के हथियार बिक्री पर रोक लगाने के बाद सिकलीगर समाज को बेरोजगारी पर लाकर खड़ा कर दिया
अंत जो इसका तोड़ निकाल पाए वह आज भी अपने मूल अस्तित्व में रह गए और बाकी कई क्षेत्रों में अपनी पारिवारिक जरूरतों पूरा करने के लिए और परिवार को पालने के लिए तथा प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए जो जहां था वहीं जैसा कार्य मिला कर लिया और समय की मांग के साथ-साथ उन्हीं के साथ उनके धर्म में रज बस का गए अर्थात उनके धर्म के साथ सम्मिलित हो गए यहां पर एक बात और भी सुनने को मिलती है कि कुछ मुगल हिंदू धर्म के रीति रिवाज और कमजोरियां जानते थे वह हिंदुओं की आस्था और भक्ति को भी जानते थे कि कैसे हिंदू देवी देवता स्वयं मानव शरीर में आकर धर्म युद्ध करते थे और और विजय होते थे इसीलिए कहा जाता है की सर कटने के बाद में भी धड़ लड़ते थे और उनको यह भी पता था की क्षत्रिय योद्धा सर कटा सकता है पर झुक नहीं सकता इसलिए धर्म भ्रष्ट करने के लिए उन्होंने कूटनीति से मदिरा और मांसाहार के लिए जबरन प्रेरित किया जिससे हिंदुओं को मिलने वाली देवी शक्ति से दूर रखा जा सके और एक साधारण इंसान होकर रह जाए जिससे उनका दमन किया जा सके और हिंदू धर्म को भ्रष्ट किया जा सके इसीलिए वर्तमान में सिकलीगर समुदाय को संघर्ष करते देख सकते हैं
दोस्तों यहां पर आप सोच रहे होंगे कि भारत में जो सभी धर्म मैं सिकलीगर हैं वह कहां से आए तो दोस्तों फल कभी भी आसमान से तो गिरता नहीं पहले बीज बनता है फिर कली और वृक्ष फिर फल तो सिकलीगर समाज चाहे हिंदू धर्म में हो चाहे मुस्लिम धर्म है चाहे सिख धर्म में हो इन सब में कुछ बातें कॉमन मिलती है जैसे कि इन सब के पूर्वज राजस्थान से निकले हुए हैं दूसरी बात कि इन सब के पूर्वज लोहे संबंधित कार्य करते थे तथा इन सब के पूर्वज राजस्थान के लोहार थे तो आपको यह तो समझ आ गया होगा कि सभी सिकलीगर समाज के लोगों के पूर्वज राजस्थान से निकले हुए हैं और लोहे से संबंधित कार्य करते थे अब यह तों हो गई बीज की बात और फल की बात तना कहां गया मतलब राजस्थान से निकले और हर धर्म में पहुंच गए पर इसके बीच का संघर्ष कहां गया इसके लिए आपको राजस्थान में
श्री मारू लोहार सिकलीगर समाज को समझना होगा
सिकलीगर समाज को अगर अलग-अलग भागों में करें तो श्री +मारु+ लोहार+ सिकलीगर+ समाज = श्री मारू लोहार सिकलीगर समाज हमने आपको पहले ही बताया था कि मरुभूमि यानी कि राजस्थान रेगिस्तान भूमि से जो लोहार निकले उन्हें मारु लोहार कहा गया और जिनकी तलवारे चमकती थी उनको सिकलीगर मारु लोहार समाज का गया तो आपको समझ आ गया होगा कि सभी सिकलीगर समाज की शाखाएं श्री मारू लोहार सिकलीगर समाज से ही निकली
चाहे हिंदू हो चाहे सीखो चाहे मुस्लिम हो वे सभी श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज से निकली हुई है तो यह था सिकलीगर समाज के इतिहास और संघर्ष का पीछे का इतिहास दोस्त इतिहास में सिकलीगर समाज पर बहुत ही कम उल्लेख मिलता है क्योंकि आप यह भी अंदाजा लगा सकते हैं की कहते हैं कि अगर आग को पकड़ना हो या आग का पता लगाना हो तो धुए का पता लगा लो आग पता लग जाएगा जहां पर आग का धुआं निकल रहा है
वहीं पर आग का पता लगाया जा सकता है और सिकलीगर समाज के बारे में आप अनुमान लगा सकते हैं कि इतनी कौशल समाज और युद्ध कलाओं में निपुण समाज शस्त्र सप्लाई में निपुण समाज और शास्त्रों की सटीकता और गुणवत्ता में निपुण समाज को यह पता था कि उनका सामने आना युद्ध और हिंदू धर्म के लिए बहुत घातक हो सकता है अगर वह दुश्मनों के नजरों में आ गए तो हिंदुस्तान में धर्म का पलड़ा और संघर्ष मय हो सकता है
इसलिए वह युद्ध में पीछे के योद्धा बनकर ही रहते थे और अपरिचित सप्लायर बनकर युद्ध भूमि में हथियार सप्लाई करते थे दुश्मनों को उनके ठिकानों का पता ना लगे और वह युद्ध में सनातन धर्म के लिए हथियार सप्लाई करते रहे.. और हिंदू योद्धाओं तक शस्त्र पहुंचा दे रहे जिससे धर्म की रक्षा होती रहे यह था श्री मारु लोहार सिकलीगर समाज में सिकलीगर समाज का इतिहास का अंश
दोस्तों हमने हमारा पूरा प्रयास किया है सिकलीगर समाज के इतिहास पर सटीक रोशनी और प्रकाश देने की तथा इसमें हमने बहुत ही सटीकता तक जाने का प्रयास किया है पर जितना हो सके हम पहुंच पाए अगर इसमें आपको और सुधार की आवश्यकता लगे तो आप हमें निसंकोच बता सकते हैं और हमारा मार्गदर्शन भी कर सकते हैं जिससे हम आगे और सटीकता तक पहुंच धन्यवाद....