बडेर किसे कहते ? और किस स्थान को बुलाया जाता है बडेर
बडेर किसे कहते हैं और क्यों कहते हैं
नमस्कार दोस्तों आज का विषय हमारा है बडेर किसे कहते हैं जी हां दोस्तों सही सुना आपने अक्सर सामाजिक स्तर पर समाज के भवन को बडेर कहते सुना भी होगा और बैनर में बडेर लिखा देखा भी होगा आखिर इसको बडेर क्यों कहा जाता है क्या कारण है कि बडेर कहने का तो चलिए आगे बढ़ते हैं और अपनी चर्चा को शुरू करते हैं दोस्तों आज का विषय हमारा बहुत ही खास है इसे अंत तक जरूर पढ़िए गा और समझने की कोशिश करिएगा कि आखिर इस नाम का अर्थ और इस नाम की खासियत क्या है दोस्तों वैसे तो हर समाज का नोहरा होता है पर सामुदायिक भवन समाज का भवन जिसे नोहरा भी कहते हैं उसके साथ बैनर में बडेर क्यों लिखा जाता है और किस स्थान को बडेर कहते हैं साथ बडेर शब्द क्यों लगाया जाता है इसको समझने के लिए
आपको आई माता बिलाड़ा के इतिहास को जानना पड़ेगा उस पर रोशनी डालनी पड़ेगी कहा जाता है कि आई माता को देवी का अवतार माना जाता है जो मुल्तान और सिंध की ओर से आबू और गोड़वाड प्रांत में होती हुई 1521 में विक्रमी बिलाड़ा आई चेत्र सुदी 2 संवत 1561 मैं ही स्वर्ग सिधार गई आई जी बीकाजी की बेटी थी उनके रूप की चर्चा सुनकर मांडू का बादशाह उनसे विवाह करने के लिए आया लेकिन बीकाजी ने तो हां कर दी पर आईजी ने विवाह मंडप पर इतना उग्र और प्रचंड रूप दिखाया कि वह क्षमा मांग कर वापस लौट गया इसके बाद आईजी ने विवाह नहीं किया उसके बाद में कल्याण और योग साधना में लगी रही विक्रम संवत 1521 में आईजी अपने पिता के साथ मालवा से बिलाड़ा आई और एक नीम के वृक्ष के नीचे से अपना पंथ चलाया तेरवि सदी में खिलजी के युद्ध से त्रस्त होकर सीरवी लोग जालौर से बिलाड़ा आ गए और वही खेती करने लगे जिन्हें कृषक भी कहा जाता था जिन्हें आईजी ने अपने पंथ में ले लिया आई जी को बहुत से लोग रामसापीर की शिष्य भी मानते हैं आज भी बिलाड़ा में आई जी कि उनके भक्त सेवा करते हैं बिलाड़ा में घी के दीपक की जोत जलती है जिसे स्वयं आईजी ने प्रज्वलित किया था आज भी वह प्रज्वल है और उस दीपक से काजल की जगह कैसर बनती है तो यह था आईजी के बारे में संक्षिप्त में वर्णन यहां पर क्यों बताया गया आप यही सोच रहे होंगे दोस्तों आप देखेंगे कि जहां पर भी बडेर लिखा होता है उसके अंदर आई जी की तस्वीर होती है वह इसलिए होती है कि जो समाज आईजी को मानता है या उनके पंथ से निकला है वह बडेर बनाकर तथा उसमें उनकी तस्वीर रखकर सेवा करते है इसलिए जहां पर आईजी की तस्वीर होती है समाज के भवन में या जिस भवन में आई जी की तस्वीर होती है उसे बडेर कहा जाता है तथा जिस समाज के भवन मैं या जिस स्थान पर आई जी की तस्वीर की सच्ची सेवा पूजा होती है वहां पर भी घी के दीपक की जोत से केसर बनती है बडेर में मूर्ति नहीं होती और हर महीने की शुक्ला द्वितीय को उनकी पूजा होती है आई जी की सेवा पूजा सात्विक होती है तथा सीरवी लोग आई जी के स्थान को दरगाह भी कहते हैं तो दोस्तों आपको समझ आ गया होगा कि जहां पर भी आई जी की तस्वीर की पूजा होती है उस स्थान को बडेर कहा जाता है और आईजी की हर महीने की शुक्ला द्वितीय को सेवा पूजा की जाती है तो दोस्तों यह था बडेर का अर्थ और इतिहास......
वडेर का प्रयोग पुराने समय में जहां पर समाज के पंच इकट्ठा होते थे और समाज की वार्ता करते थे जहां तथा हर महीने की शुक्ल द्वितीय को आई माता की पूजा के लिए सभी समाज इकट्ठा होकर अपने अपने घर से प्रसाद के लिए भोग लाकर इकट्ठा कर कर उनकी पूजा करते भोग लगाते थे समाज से संबंधित अगर अगर कोई व्यक्ति बाहर से आता था तो उसे बडेर में ठहराया जाता था जिससे किसी परिवार की स्थिति पर भार नहीं पड़ता था और सभी समाज के लोग अपने अपने घर से लेकर उसके लिए भोजन सामग्री लाते थे जिससे समाज में प्रेम भी बढ़ता था तथा बाहर से आने वाले व्यक्ति पर खर्चे का बोझ भी कम होता था तथा समाज के लोग वहां पर आकर महीने में एक बार तो इकट्ठा होते थे जिससे आपस में प्रेम मेलजोल बढ़ता था समाज के सारे कार्य चाहे अच्छे हो या बुरे सुख हो या दुख सभी समाज के बडेर में ही होते थे ...