आज भी प्रासंगिक हैं बाबा साहेब के विचार — प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल

शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पियेगा दहाड़ेगा, ज्ञान जहां न हो सके, जीवन वहीं उजाड़ेगा...

आज भी प्रासंगिक हैं बाबा साहेब के विचार — प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल

आज भी प्रासंगिक हैं बाबा साहेब के विचार — प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल

शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पियेगा दहाड़ेगा,
ज्ञान जहां न हो सके, जीवन वहीं उजाड़ेगा...

आज 14 अप्रैल है — भारतीय संविधान के शिल्पी, समाज सुधारक और विचार क्रांतिकारी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्म जयंती। इस दिन को मैं व्यक्तिगत रूप से केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि एक प्रेरणादायक यात्रा के रूप में देखता हूं। उनके विचारों की लौ आज भी हमें दिशा देती है।

बाबा साहेब का जीवन इस बात का प्रतीक है कि कैसे कठिन संघर्ष, अद्वितीय विद्वता और व्यापक दृष्टिकोण के बल पर कोई साधारण व्यक्ति महामानव बन सकता है। वे न केवल दलितों के मसीहा थे, बल्कि उन्होंने समूचे भारतीय समाज के समरस, संगठित और न्यायसंगत स्वरूप की कल्पना की थी।

आज जब हम सामाजिक असमानता, जातीय विद्वेष और वैचारिक टकराव से ग्रस्त समाज को देखते हैं, तब बाबा साहेब के विचार पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक हो जाते हैं। उन्होंने ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ का नारा दिया, लेकिन क्या हम इसका पालन कर पा रहे हैं? क्या समाज शिक्षित हो रहा है या भ्रमित? क्या संगठन बना रहे हैं या विखंडन हो रहा है?

बाबा साहेब का यह दृढ़ मत था कि जो समाज अपना इतिहास नहीं जानता, वह अपना भविष्य नहीं बना सकता। उन्होंने हमें यह सिखाया कि संविधान केवल कानून नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की आधारशिला है। उन्होंने महिलाओं, दलितों और वंचित वर्गों को न केवल संवैधानिक अधिकार दिलाए, बल्कि उन्हें आत्मगौरव की भावना भी दी।

2014 के बाद कुछ ऐतिहासिक निर्णय— जैसे अनुच्छेद 370 और 35A की समाप्ति— उनके अधूरे स्वप्न की ओर एक कदम हैं। परंतु उनका सबसे बड़ा स्वप्न—सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता—अब भी अधूरा है। इसके लिए हमें केवल श्रद्धांजलि नहीं, बल्कि निरंतर सक्रियता और आत्मचिंतन की आवश्यकता है।

बाबा साहेब ने केवल अधिकारों की बात नहीं की, बल्कि जिम्मेदारियों का बोध भी कराया। उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को एक बौद्धिक आधार प्रदान किया, जहां जाति और पंथ से ऊपर उठकर ‘राष्ट्र’ सर्वोपरि था।

आज कुछ विदेशी ताकतें हमारी संस्कृति और सामाजिक संरचना को विघटित करने का प्रयास कर रही हैं। ऐसे समय में बाबा साहेब की विचारधारा ही हमें एकजुट कर सकती है।

आइए, आज उनकी जयंती पर हम संकल्प लें—उनके अधूरे स्वप्नों को पूरा करने का, समाज में सौहार्द और समता लाने का और भारत को विचारों की वह भूमि बनाने का जहां हर नागरिक समान रूप से सम्मानित हो। यही होगी बाबा साहेब को सच्ची श्रद्धांजलि।

जय भीम, जय भारत।

प्रो. (डॉ.) मनोज कुमार बहरवाल,
प्राचार्य, सम्राट पृथ्वीराज चौहान, राजकीय महाविद्यालय, अजमेर।