मुद्राएं एवं मुद्रिका हमारी सभ्यता-संस्कृति के प्राचीन एवं प्रामाणिक स्रोत हैं।
संगोष्ठी के प्रथम दिवस के उद्घाटन सत्र का प्रारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं संस्था गीत के साथ हुआ। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विश्वप्रसिद्ध इतिहाविद् एवं मुद्राशास्त्री डॉ. शशिकान्त भट्ट ने प्राचीन मुद्राशास्त्र एवं वेदों के अन्तर्संबंध का विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि मुद्राओं का भारतीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया जाय। हमारे मुद्राओं में हमारा राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक इतिहास सन्निहित है।

मुद्राएं एवं मुद्रिका हमारी सभ्यता-संस्कृति के प्राचीन एवं प्रामाणिक स्रोत हैं।
(मुद्राशास्त्र एवं मुद्रिका एक वैश्विक परिदृश्य पर त्रिदिवसीय कांफ्रेन्स का आगाज )
उदयपुर, 15 अप्रैल, 2025। भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के सभागार में सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी संकाय के इतिहास विभाग और अकेडमी ऑफ न्यूमिसमिटिक्स एंड सिगिलोग्राफी के संयुक्त तत्वावधान में ‘मुद्राशास्त्र एवं मुद्रिका एक वैश्विक परिदृश्य’ विषय पर त्रिदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रेन्स का आगाज हुआ।
संगोष्ठी के प्रथम दिवस के उद्घाटन सत्र का प्रारंभ मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन एवं संस्था गीत के साथ हुआ। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता विश्वप्रसिद्ध इतिहाविद् एवं मुद्राशास्त्री डॉ. शशिकान्त भट्ट ने प्राचीन मुद्राशास्त्र एवं वेदों के अन्तर्संबंध का विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि मुद्राओं का भारतीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया जाय। हमारे मुद्राओं में हमारा राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक इतिहास सन्निहित है।
उन्होंने स्वस्तिक की अवधारणा, सत्यं, शिवम्, संुदरम् की भारतीय परपंरा और उनमें निहित समस्त विश्व की मंगलकामना की भावना को स्पष्ट किया। हमारी मुद्राओं में ऐसे कल्याणकारक चिह्न हमारी भारतीय परंपरा की वैश्विक मानवता की भावना को व्यक्त करते हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता एवं तक्षशिला आदि के पुरावशेषों में अतीत का सुनहरा इतिहास छिपा हुआ है। मुद्रा और मुद्रिकाओं के माध्यम से इतिहास के अनेक पक्षों का सहज ज्ञान प्राप्त होता है।
भारतीय म्यूजियम के महानिदेशक डॉ बी आर मणि ने दूसरे मुख्य वक्ता के रूप में ऑनलाइन माध्यम से अपना उद्बोधन देते हुए कहा कि मुद्रा शास्त्र व्यापक रूप में इतिहास के विभिन्न चरणों के राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, धार्मिक परिदृश्य को उद्घाटित करता है। सिक्के, मोहरें आदि भारतीय इतिहास के जीवंत स्रोत हैं। आपने विभिन्न धातुओं के सिक्कों के बारे में उनके वजन आधारित मूल्यमान आदि को विस्तार के साथ रेखांकित किया।
उन्होंने कहा कि भारतीय मुद्राओं का वैश्विक महत्व रहा है। उन्होंने इण्डो-ग्रीक, इण्डो-ब्रिटिश मुद्राओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस संगोष्ठी के आयोजन को महत्वपूर्ण बताया है।
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि प्रोफेसर भगवती प्रकाश शर्मा ने प्रस्तुत विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इराक और मेसोपोटामिया सभ्यता के अवशेषों में भारतीय राजतंत्रों से संबंधित मुद्राएं प्राप्त हुई हैं।
प्राचीन मुद्राएं और सिक्के प्राचीन इतिहास के अत्यंत अमूल्य खजाने हैं। पंचमार्का सिक्के, निष्क, शतमान, पदमान आदि प्राचीन मुद्राएं भी आहाड़ सभ्यता से प्राप्त हुयी। वाल्मीकि रामायण में इण्डोनेशिया का संदर्भ आता है। वर्तमान में मुद्राएं आदि ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर पुनः इतिहास लेखन की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुद्राएं किसी भी संस्कृति और सभ्यता की पहचान के साथ विचारों की संवाहक भी होती है।
उन्होंने कहा कि भारत की सभ्यता को इंगित करनेवाली मुद्राओं का व्यापक रूप में अनुशीलन किया जाना चाहिए। मुद्राओं में हिन्दू देवी देवताओं के चित्र मिलते हैं । यह हमारी धार्मिक विश्वास की परंपरा को संकेतित करती हैं। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के चेयरपर्सन कर्नल प्रोफेसर शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा कि मुद्राएं हमारी संस्कृति और परंपराओं के प्रतीक हैं। ये विनिमय के माध्यम के रूप में विभिन्न नामों से, विभिन्न रूपों में, धातुओं के रूप में प्राप्त होते हैं।
यह कहा जा सकता है कि मुद्राएं इतिहास के प्रामाणिक स्रोत हैं। इतिहास के स्रोत के रूप में साहित्य के साथ मुद्राओं का भी अपना विशेष महत्व है। सिंधु लिपि को पढ़ना आज भी चुनौती है। यदि उस लिपि को पढ़ लिया जाए तो हमें इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं का ज्ञान प्राप्त हो सकता है। यदि यह कहा जाए कि मुद्राएं सभ्यता एवं संस्कृति की सांसें हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज मुद्राओं के माध्यम से भारत एवं विश्व के अन्य देशों के साथ भारत के संबंधों को सहज रूप में रेखांकित किया जा सकता है।
इससे पूर्व विद्या प्रचारिणी सभा के मंत्री डॉ महेन्द्र सिंह आगरिया ने विशिष्ट अतिथि के रूप में उद्बोधन देते हुए कहा कि मुद्रा शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है। मुद्राओं के माध्यम से व्यापार प्रणाली सुगम हुई है। मुद्राओं के अभाव में वस्तु विनिमय ही व्यापार का आधार हुआ करता था। वर्तमान में बाजारवादी संस्कृति के कारण मानव वास्तविक सुख से वंचित हो रहा है। इस सत्य को जानने की आवश्यकता है।
मुद्रा जैसे विषय पर विचार विमर्श करना एक सार्थक प्रयास है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अधिष्ठाता डॉ. शिल्पा राठौड़ ने अतिथियों का स्वागत किया एवं संगोष्ठी की सफलता की कामना की। संगोष्ठी आयोजन सचिव डॉ पंकज आमेटा ने संगोष्ठी की रूपरेखा एवं इसके महत्व को उद्घाटित किया।
इस अवसर पर अतिथियों द्वारा संगोष्ठी सोविनियर का विमोचन किया गया एवं अतिथियों को उपरणा एवं स्मृतिचिह्न के प्रदान कर सम्मानित किया गया।। उक्त सत्र में विद्या प्रचारिणी सभा के वित्तमंत्री शक्तिसिंह राणावत, भूपाल नोबल्स संस्थान के प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिंह राठौड़, कुल सचिव, भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय डॉ निरंजन नारायण सिंह राठौड़, विद्या प्रचारिणी सभा के सदस्यगण सत्यनारायण सिंह मदारा, दिलीप सिंह दुदोड़, डीन पीजी स्टडीज डॉ प्रेमसिंह रावलोत, विभिन्न संकायों के अधिष्ठातागण, निदेशक एवं संकाय सदयगण, डॉ जीवन सिंह खरकवाल, डॉ दिग्विजय भटनागर, डॉ मनीष श्रीमाली, डॉ भानु कपिल, डॉ नेरन्द्र सिंह राणावत, डॉ भूपेन्द्र सिंह राठौड़ सहित देश-विदेश के इतिहासविद् एवं मुद्राशास्त्री, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। डॉ. ज्योतिरादित्य सिंह भाटी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सत्र का समापन राष्ट्रीय गान के साथ हुआ। प्रथम तकनीकी सत्र में अनेक विशेषज्ञों ने अपने पत्रवाचन प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन डॉ अनीता राठौड़ एवं डॉ मनीषा शेखावत ने किया।
डॉ शिल्पा राठौड़
अधिष्ठाता