"त्यौहार 9 दिन का"
"त्यौहार 9 दिन का"

"त्यौहार 9 दिन का"
चलो चलते हैं 9 दिन की बहार आई ,
संग में मेरी माता रानी को भी साथ लाई,
माता को घर पर लाते हैं हम,
कर मनुहार ऊंचे सिंहासन पर बैठाते हैं हम,
पूजा करके नौ दिन की,
नदी ,नाले, कुएं , में उन्हें बहाते हैं हम,
9 दिन मूर्ति रूपी माता को शीश नवाते हैं हम,
पकवान खिलाते ,अपने पर इतराते हैं हम ,
सच मायने में यह मान नहीं ,
जब तक तुम्हें सच्ची माता का ज्ञान नहीं,
जीवित माता को तो कभी नहीं तुम शीश झुकाते हो,
अपनी सच्ची मां को कभी आदर, सम्मान रूपी क्या पुष्प कभी चढ़ाते हो,
क्या पत्नी रूपी लक्ष्मी को आदर से देख पाते हो,
क्या छोटी सी बच्ची में भी तुम दर्शन मां कर पाते हो,
क्या राह चलती लड़की को देख कर,
नियंत्रण जीव्हा को दे पाते हो,
क्या मजबूरी में फंसी लड़की को देख संयम खुद पर रख पाते हो, क्या हर एक नारी में तुम अपनी मां ,बहन, देख पाते हो,
नहीं यदि तो यह कैसी भक्ति है, यह कैसी आराधना है ,
दहेज, हत्या, मारपीट ,भ्रूण हत्या, ना जाने कितने पाप तुम करते हो, इतने मुखोटों के बीच तुम क्या छुपाना चाहते हो,
9 दिन भक्ति करके तुम क्या दिखाना चाहते हो,
मां है वह मां सब जानती है इतने चेहरों के बीच भी वास्तविकत चहरा पहचानती है,
मां की भक्ति सच में करनी है तो श्रद्धा सुमन अर्पण करो,
हर एक नारी जो आपके जीवन में उसे नतमस्तक होकर नमन करो|