नंद चतुर्वेदी व्याख्यान देते प्रसिद्ध साहित्यकार विष्णु नागर. नंद चतुर्वेदी की बंगला में अनुवादित काव्य पुस्तक शिशिरेई सेई दिन का विमोचन
उदयपुर में आयोजित नवें नन्द चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में प्रसिद्ध कवि विष्णु नागर ने 'हमारे समय में लेखन' विषय पर विचार रखे। कार्यक्रम में 'शिशिरेइ सेइ दिन' पुस्तक का विमोचन भी हुआ। जानें क्या कहा साहित्यकारों ने।
उदयपुर, 22 अप्रेल। जीवन की कठिन साधना के साधक थे नन्द बाबू। यह विचार नवें नन्द चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान 'हमारे समय में लेखन' विषय पर प्रख्यात कवि और कथाकार विष्णु नागर ने अपने मुख्य वक्तव्य में प्रकट किये। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजस्थान विद्यापीठ की पूर्व वीसी प्रो. दिव्यप्रभा नागर ने की। कार्यक्रम में नन्द चतुर्वेदी की कविताओं का बांग्ला में अनुवादित पुस्तक 'शिशिरेइ सेइ दिन' का विमोचन भी हुआ।
नंद चतुर्वेदी फाउंडेशन के अरूण चतुर्वेदी ने बताया कि अपने वक्तव्य में विष्णु नागर ने कहा कि नन्द बाबू ऐसे कवि थे जो केवल कविता के लिए नहीं बल्कि समाज के लिए कविता करते थे। समता एवं न्याय के जो सवाल उनके राजनीतिक चिंतन के केंद्र में थे वे ही उनकी कविता के केंद्र में भी थे। जिस उम्र में व्यक्ति अध्यात्म की शरण में जाते हैं, उस उम्र में भी नन्द बाबू इस दुनिया में रहे, दुनिया की समस्या में रहे, उनमें डूबे और लगातार लेखन किया। नन्द बाबू राजनीतिक सोच और कविता को जोड़कर लिखते हैं, यह एक साहित्यिक चुनौती है।
नागर ने कहा कि आर्थिक उदारीकरण ने लोगों की सोचने-समझने की शक्ति समाप्त कर दी। इसने व्यक्ति को संगठनों से दूर कर दिया। हिंदी लेखन में अधिकांश केवल साहित्यिक लिखा जाता है, मौलिक लेखन बंद हो गया है। हिन्दी में साहित्येतर कार्य बंद हो गया है। आज के हिन्दी लेखक समाज की उथल-पुथल से बिल्कुल विमुख है। हिन्दी का लेखक चुनौतियों से डर रहा है पर उपलब्धि है कि हिन्दी लेखक का जनतांत्रिकीकरण हो रहा है। महिलाएं, दलित व आदिवासी लेखक पहले से अधिक नजर आते हैं।
साहित्यकार डॉ माधव हाड़ा ने अपने वक्तव्य में कहा कि नन्द बाबू गंभीर विचारपरक लेखक थे। उन्हें कविता पर भरोसा था। नन्द बाबू के मन में कविता को लेकर द्वन्द्व नहीं था। प्रो दिव्यप्रभा नागर ने आज के साहित्य की पीड़ा और भटकाव के प्रति अपनी चिंता प्रकट की।