भारत विकास परिषद के प्रान्तीय अध्यक्ष एवं आलोक संस्थान के निदेशक शिक्षाविद

डॉ. प्रदीप कुमावत जी, ने दिया राष्ट्र एकता का संदेश

भारत विकास परिषद के प्रान्तीय अध्यक्ष  एवं आलोक संस्थान के निदेशक शिक्षाविद

डॉ. प्रदीप कुमावत जी, ने दिया राष्ट्र एकता का संदेश,उल्लेखनीय है वर्तमान में रीट एग्ज़ाम चरम पर है, ऐसे में सर्व समाज की  विखण्डित विचारधारा को भारतीयता के आधार "पहले आओ पहले पाओ"

तर्ज पर सुविधा आवंटन का संदेश दिया, हम सभी का कर्त्तव्य है सभी जातिगत भेदभाव से ऊपर उठकर  हम भारतीय है, के भाव से एक दूसरे के सहयोग में आगे आये एवं सभी भारतीयों को विखण्डन की कृत्रिम प्रोग्रामिंग से बाहर आने का संदेश दे।  मानव विवेक बुद्धि से युक्त प्रभु सदृश कृति  है, प्रकर्ति एवं परमात्मा ने मानवदेह की रचना में कोई भेद नही किया है।

भारतीय संस्कृति में गुरु का महत्व क्या है यह सर्वविदित है।

शास्त्रों में गुरु किसी देह को नही बल्कि गुरु "ज्ञान" को कहा गया है उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उस देह से जो तप किया गया  ,उस तपस्या के लिये गुरु पद पुजनीय है, जो बिना भेदभाव के सभी के अज्ञान रूपी अंधकार को अपने सामर्थ्य के प्रयोग से प्रकाश मान करने के लिये तत्तपर हो वह ज्ञान ही गुरु है।  ज्ञान रूपी गुरु के चेतन होते ही समस्त भेद भाव जड़मूल सहित नष्ट हो जाते ऐसा एक सन्देश ज्ञान स्वरूप में उपलब्ध है जो हमारी विखण्डित शक्ति को एक सूत्र में पिरोने में सहायक है-मानव मस्तिष्क में ब्रह्म स्थान माना गया है अतः सभी बुद्धि के प्रयोग से  ब्राह्मण , हाथों से कर्म /स्व एवं पर सुरक्षा करने से क्षत्रिय तथा व्यापारी एक साथ है, उदर (पेट) की नियमित आहार पूर्ति हेतु पुनः सभी "व्यापारी" है, कोई सेवा बेचता है,कोई नौकरी करके,  तो कोई उत्पाद बेचता है दुकान लगा के फेरी करके , एवं  कमर के निचले हिस्से से सभी मलमूत्र के विसर्जन विभाग के चलते क्षुद्र है।  अब एक भी विभाग दूसरे विभाग का सहयोग न करे बल्कि एक दूसरे का विरोध करे एकदूसरे के कर्मो में हस्तक्षेप करे तो देह विकृत होकर नष्ट हो जाएगा। ब्रह्म प्रदेश बुद्धि विभाग ब्राह्मण वर्ग अपने स्वधर्म आदर्श रूप से नही निभाया तो  

धर्म सुरक्षक क्षत्रिय  प्रदेश विकृत , 

धर्म सुरक्षक क्षत्रिय द्वारा स्वकर्म(बुद्धि प्रयोग से सुरक्षा कार्य) ठीक से नही कि गए तो आहार चर्या चलाने एवं राज कोष बढ़ाने में सहायक व्यापारी वर्ग विकृत, जो कई प्रकार के कर भार से निरंतर विकृत किया जा रहा है। यदि व्यापारी वर्ग दुखी रहा तो राष्ट्र के विकास की गति दूषित होना निश्चित है। ऐसी शाषन व्यवस्था जिसका हाजमा खराब रहेगा ,उससे सुशासन में बाधा आएगी या नही यह निर्णय आप ही करे। आहाचर्या प्रदेश उदर (पेट)का हाजमा बिगड़ा तो   कहा जाता है पेट खराब तो हजार बीमारियां जन्म लेती है फलस्वरूप क्षुद्र प्रदेश विसर्जन विभाग कष्ट में आएगा ही।

यह लेख शांत मन से निर्विवाद होकर न्यूट्रल भाव से पढ़ा जाए तो अवचेतन मन  सहज ही भेदभाव के  प्रोग्रामिंग वाली फाइल को नष्ट कर देगा।  अतः जिस प्रकार शरीर के  विभाग एक दूसरे का सहयोग उनके विभाग आवंटन के अनुसार करे तो पूर्ण देह स्वस्थ होगी। उसी प्रकार चारो वर्ण एक दूसरे को सहयोग करे,ताकि समाज रूपी देह कोई किसी को कम न आंके सभी का अपना अपना महत्व है  सभी  विभाग अपना अपना कर्तव्य निभाले , तो समाज रूपी देह व्यवस्था स्वस्थ होगी, समाज स्वस्थ होगा तो राष्ट्र स्वस्थ होगा, भारत विश्व गुरु क्यो है यह प्रमाण देने की कोई आवश्यकता नही रह जाएगी।

जय गुरुदेव,जय जिनेंद्र,जय श्री राम,

जय श्री कृष्ण, यहां हर नर में महादेव है, इसका जीवन्त प्रमाण यह है कि जैसे ही इस देह से शिव तत्व बाहर निकल जाता है यह देह शव हो जाता है। लोकतंत्र की खूबी यह है कि मानव जन्म से नही कर्म से अपना विभाग चुन सके। आशा है सभी इस लेख में प्रदर्शित सन्देश को आत्मसात करने का कमांड अपने मस्तिष्क को देंगे।